जब तक हममें अहंकार का लेशमात्र भी रहेगा, तब तक हमारे मन में सत्य धारणा कदापि नहीं हो सकती ! तुम सबको अहंकाररूपी शैतान अपने ह्रदय से निकाल देना चाहिए, आध्यात्मिक अनुभूति के लिए संपूर्ण आत्म-समर्पण ही एकमात्र उपाय हैं !!
--(स्वामी विवेकानंद साहित्य)
तृतीय खंड
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